hindisamay head


अ+ अ-

कविता

वह चतुर कम

मत्स्येंद्र शुक्ल


हत्‍या के विरोध में हो रहीं हत्‍याएँ
गर्माहट के साथ उड़ जातीं शीतल हवाएँ
कुटिल समूह रच रहा विचित्र गाथाएँ
सत्‍ता और संसद के गलियारे खामोश
वोट-गणित जटिल प्रश्‍नों के
निकाले जा रहे अनुकूल उत्‍तर
जनता का रक्‍त अरे ! वोट बैंक
चिंता कोई नहीं :
केवल यही कि जाने किस करवट
बैठ जाय पाँच वर्ष बाद
चुनाव का भारी भरकम ऊँट
कान में भर गया गाढ़ा खूँट
निर्दोष व्‍यक्ति जो चौराहे पर मारा गया
वह चतुर कम भावुक ज्‍यादा था
देश और जनता और गरीबी
कितने प्रासंगिक हैं ? जो पूछता
वही निराश हतप्रभ लौट जाता
पोपली चट्टान अग्नि-शिखरों की ओर


End Text   End Text    End Text

हिंदी समय में मत्स्येंद्र शुक्ल की रचनाएँ